आज इस लेख में हमने कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 7 "संघवाद" के बारे में नोट्स दिए है। यह अध्याय आम तौर पर संघवाद की अवधारणा पर केंद्रित है, जो सरकार की एक प्रणाली है जिसमें सत्ता को केंद्र सरकार और विभिन्न क्षेत्रीय सरकारों या राज्यों के बीच विभाजित और साझा किया जाता है। आज इस लेख में इस अध्याय से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण विषयो पर चर्चा करेंगे जो अक्सर परीक्षाओ में पूछे जाते है|
भाग 'B' - अध्याय 7 (संघवाद)
संघवाद की परिभाषा -
संघवाद एक राजनीतिक तंत्र है जिसमें शक्तियों का संग्रहण एक ही केंद्रीय संगठन या संघ के पास होता है। इस प्रणाली में, सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक प्रभाव केवल एक या एक से कुछ गुणस्थानों द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं, जिनमें अकेले एक संगठन के अधिकार होते हैं और अन्य सभी संगठन उसकी कमांड के तहत काम करते हैं। संघवाद के तहत, सामाजिक और आर्थिक निर्णय और नीतियों का अधिकार एक ही केंद्रीय संगठन या सरकार के हाथ में होता है, जिससे विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक समूहों को कम प्रभाव और निर्णय का मौका मिलता है।
सरकार की एकात्मक और संघीय प्रणालियों के बीच तुलना -
सरकार की एकात्मक (यूनिटरी) और संघीय प्रणालियों (फेडरल) के बीच तुलना करते समय, दोनों प्रणालियों के मुख्य विभिन्नताएँ और उनके विशेषता होती हैं।
एकात्मक प्रणाली (यूनिटरी प्रणाली):
- एकात्मक प्रणाली में सारा शक्तियों और निर्णयों का केंद्र स्थित एक ही सरकार में होता है।
- राज्यों या प्रांतों को केवल कानूनी कार्यक्रमों का पालन करने का अधिकार होता है, और शक्तियाँ या निर्णय उनके उच्चतम सरकार से आते हैं।
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक निर्णय सेंट्रल सरकार द्वारा लिए जाते हैं, और राज्यों को उन्हें अपनी आवश्यकताओं के अनुसार लागू करने की अनुमति नहीं होती।
- यूनिटरी प्रणाली अक्सर छोटे और समूहवादी देशों में पाई जाती है, जहाँ विभाजन और विविधता कम होते हैं।
संघीय प्रणाली (फेडरल प्रणाली):
- संघीय प्रणाली में शक्तियाँ सेंट्रल सरकार और स्थानीय इकाइयों (राज्यों, प्रांतों आदि) के बीच साझा की जाती हैं।
- सेंट्रल सरकार और स्थानीय सरकारों के पास अपनी-अपनी निर्णयक क्षमता होती है, और उन्हें अपने क्षेत्र में स्वायत्तता और स्वराज्य की सुरक्षा करने का अधिकार होता है।
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक निर्णय सेंट्रल और स्थानीय सरकारों द्वारा साथ-साथ लिए जाते हैं, और संघीय प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न स्तरों के सरकारी दफ्तर और संस्थाएँ काम करती हैं।
- संघीय प्रणाली अक्सर बड़े और विविध देशों में पाई जाती है, जिनमें विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक, आर्थिक और भाषाई विविधता होती है।
संघवाद के फायदे और नुकसान -
संघवाद, जो कि सरकारी शक्तियों को केंद्रीय और स्थानीय स्तरों पर साझा करने की प्रणाली है, के फायदे और नुकसान निम्नलिखित हो सकते हैं:
फायदे:
- राजनीतिक विविधता और समानता
- समृद्धि का बढ़ना
- राज्यों की स्वायत्तता
नुकसान:
- संघीयता के तंत्र में संघवाद की असमर्थन
- संघीय संघर्ष
- समानता की अक्षमता
भारतीय संविधान में संघीय विशेषताएं -
भारतीय संविधान में संघीय विशेषताएँ कई हैं, जो यहाँ उल्लिखित हैं:
डिवाइज्ड सूजरेन्टी (विभाजित साम्राज्यता): भारतीय संविधान में संघवाद का मुख्य रूप "डिवाइडेड सूजरेन्टी" के आधार पर है, जिसका अर्थ है कि संविधान के अनुसार केंद्र और राज्यों के बीच समानता है, लेकिन संविधान के विभाग 1 और 2 में दिए गए सूची के अनुसार संघ के पास विशेष समर्पित और अपर सूजरेन्टी की शक्तियाँ हैं।
सूची की व्यावसायिकता: संविधान के आर्टिकल 1 में भारत को "एक संघीय राष्ट्र" घोषित किया गया है, लेकिन त्रैमासिक सूची में विभाजित होने के कारण यह भारतीय संविधान को सूची की व्यावसायिकता की विशेषता प्रदान करता है।
संविधानीय सूची की अनुष्ठानिकता: भारतीय संविधान में सूची और संविधानीय सूची की दो प्रकार की सूचियाँ हैं, जो संघ और राज्यों के बीच शक्तियों की विनियमन को सुनिश्चित करती हैं।
संघवाद के अनुशासनिक नियम: भारतीय संविधान में संघवाद के तत्वों को सुरक्षित रखने के लिए अनुशासनिक नियम और मंजूरियाँ दी गई हैं। इनमें आर्टिकल 1, आर्टिकल 3, आर्टिकल 200, आर्टिकल 249, आर्टिकल 250, आर्टिकल 252, आर्टिकल 253, आर्टिकल 254, आर्टिकल 256 आदि शामिल हैं।
स्थानीय आर्थिक प्रबंधन: भारतीय संविधान में स्थानीय आर्थिक प्रबंधन को महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है, और संघ और राज्यों के बीच आर्थिक संवदेना की व्यवस्था की गई है।
चुनावी प्रक्रिया और संविधानीय संवदेना: संविधान में संघीय विशेषताओं के अनुसार चुनावी प्रक्रिया और संविधानीय संवदेना की व्यवस्था है।
संविधान में सूची की शक्तियों का बंटवारा: संघीय विशेषताओं के तहत, संविधान में सूची की शक्तियों को केंद्र और राज्यों के बीच बंटवारा किया गया है।
भारत में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण -
भारत में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण संविधान द्वारा निर्धारित होता है। यहाँ पर मुख्य शक्तियों का वितरण दिए गए है:
केंद्र सरकार की शक्तियाँ:
सूची की विशेषता (Union List): इसमें संघ को कुछ मुख्य क्षेत्रों में निर्णय लेने की अनुमति होती है, जैसे कि रक्षा, विदेशी मुद्दे, मुद्रा, संविदान का आदान-प्रदान, आदि।
संविधानीय सूची (Concurrent List): इसमें संघ और राज्य दोनों स्तरों के बीच साझा निर्णय लेने की अनुमति होती है, जैसे कि शिक्षा, कानून, बैंकिंग, आदि।
संघीय सूची (State List): इसमें राज्यों को निर्णय लेने की अनुमति होती है जो कि स्थानीय मुद्दों, स्वास्थ्य, जल संसाधन, स्थानीय सरकार के आदिकार से संबंधित होते हैं।
राज्य सरकार की शक्तियाँ:
संविधानीय सूची (Concurrent List): राज्यों को इसमें स्थानीय और नैतिक मुद्दों पर निर्णय लेने की अनुमति होती है, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, आदि।
संघीय सूची (State List): राज्यों को इसमें स्थानीय मुद्दों, स्वास्थ्य, जल संसाधन, स्थानीय सरकार के आदिकार से संबंधित निर्णय लेने की अनुमति होती है।
स्थानीय पंचायतों और नगर पालिकाओं का प्रबंधन: राज्यों को स्थानीय पंचायतों और नगर पालिकाओं का प्रबंधन और निर्णय लेने की पूरी अधिकार होती है।
भारत में संघवाद की कार्यप्रणाली -
भारत में संघवादी संरचना एक विशेष प्रकार की सरकारी प्रणाली है, जिसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का साझा वितरण होता है। संघवाद में केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें आपस में सहयोग करती हैं और देश के विकास में सहयोग करने का प्रयास करती हैं। भारत में संघवाद कार्यप्रणाली के कुछ मुख्य तत्व:
- सूची की विशेषता (Union List)
- संविधानीय सूची (Concurrent List)
- संघीय सूची (State List)
- स्थानीय प्रशासन
- संविधानीय निगरानी
- अनुशासनिक नियम
- राज्य संघ के बीच सहयोग
- न्यायपालिका के बीच संघवाद
भारत में संघवाद के समक्ष आने वाली चुनौतियों की चर्चा -
भारत में संघवाद के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं, जो निम्नलिखित हो सकती हैं:
- संघ और राज्यों के बीच विवाद
- स्थानीय स्तर पर कमजोरी
- राज्यों की संघर्ष भावना
- कानूनी प्रक्रियाओं की देरी
- संघवाद के बावजूद असमान विकास
- संघवाद के तंत्र में असमर्थन
- संघवाद की असमर्थन
- संविधानिक निगरानी की कमी
- विभिन्न समुदायों के मसले
संघीय संबंधों पर राजनीतिक और आर्थिक कारकों का प्रभाव -
संघीय संरचना राजनीतिक और आर्थिक कारकों को साक्षात्कार करती है और इनके प्रभाव को प्रदर्शित करती है। निम्नलिखित हैं कुछ प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव जो संघीय संरचना के माध्यम से प्रकट हो सकते हैं:
राजनीतिक प्रभाव:
- संघवाद से संघ और राज्यों के बीच सामंजस्य और समरसता की भावना पैदा होती है। यह समरसता और समन्वय के माध्यम से देश की एकता और एकात्मता को मजबूत करता है।
- संघवादी संरचना के कारण राज्य सरकारें एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा और सहयोग करती हैं। यह स्वास्थ्य और सकारात्मक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है जो समाज में विकास को प्रोत्साहित करता है।
- राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से नए नए नीतियों और विचारों का परीक्षण कर सकती हैं, जो नये समाजिक संवदेना को प्रोत्साहित करते हैं।
- संघवाद में स्थानीय प्रशासन को महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त होता है, जो स्थानीय समस्याओं के समाधान में सक्षम होता है।
- राज्य सरकारें अपने कार्यकर्ताओं के द्वारा स्थानीय मुद्दों का प्रबंधन कर सकती हैं, जिससे विचारों का बदलाव और नए विकास के मार्ग की स्थापना हो सकती है।
आर्थिक प्रभाव:
- संघवाद के तंत्र के कारण विकास कार्यों का सही प्रबंधन होता है, जो समग्र आर्थिक विकास को सुनिश्चित करता है।
- संघवाद से विभिन्न राज्यों के बीच आर्थिक समानता की स्थिति बनी रहती है।
- संघवाद के माध्यम से स्थानीय सरकारें अपने क्षेत्र में विकास कार्यों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर आर्थिक विकास होता है।
- संघवाद से निवेशकों को विभिन्न राज्यों में निवेश करने की अनुमति मिलती है, जिससे आर्थिक विकास बढ़ता है।
- संघवादी प्रणाली से राज्य सरकारें अपनी आर्थिक योजनाओं को स्वतंत्र रूप से निर्धारित कर सकती हैं, जो उनके विकास के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करता है।
ये कुछ प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव हैं जिनका संघीय संरचना पर प्रभाव होता है। यह सबकुछ संघवाद के माध्यम से सही रूप से प्रबंधित करके विकास और सामाजिक समृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण होता है।
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